Wednesday 1 March 2017

फरवरी 2017 epaper

आपत्तिः
आखिर वह विषेष व्यक्ति या पैग़म्बर दूसरों से कहेगा वह उसकी सुनी हुई बात होगी जो अन्य सबके लिए सुने हुये(hear -say ) के दर्जे का ही अप्रमाणित साक्ष्य होगा। वह सन्देष वेदों के लिए खुदा का कहा हुआ नही बल्कि उस विषेष व्यक्ति का कहा हुआ ही होगा जो यह कहता है कि ईष्वर या खुदा ने उससे ऐसा कहा था। ऐसी गवाही कानून की नज़र में घटिया गवाही है। क्या ज़मानत है इस बात की कि मुहम्मद साहब खुदा के पैग़म्बर है? केवल मुहम्मद साहब का अपना ब्यान, बु़िद्ध विवेक की नज़़रों में ठोस सबूत नही माना जा सकता। किसी ने न फ़रिष्ते आते हुये और मुहम्मद साहब को आयतें सुनाते या पैगा़म देते देखे, न अन्य कोई प्रमाण है इस श्रद्धा-जन्य धारणा के पक्ष में। 

उत्तर- जहाँ तक कानूनी प्रमाण का सम्बन्ध है, प्रमाण तो उस दषा में भी नही हो सकता जिसका आपने प्रस्ताव रखा है। एक व्यक्ति कहता है कि मेरे मन में ईष्वर ने यह डाला है कि गरीबों की सहायता करों, दूसरा यह कह सकता था कि नही, ईष्वर की इच्छा है कि हर कोई अपनी मेहनत की कमाई खाये, दूसरों को दान देकर उसे निकम्मा न बनाये। क्या प्रमाण होता है इस बात का कि पहला व्यक्ति ठीक कह रहा था सिवाये इसके कि दूसरा व्यक्ति अपने मन में यह मानता कि प्रथम व्यक्ति सच्चा था? लेकिन मन के अन्दर से किसी सच्चाई को स्वीकार करने के बाद कोई ज़बान से इन्कार करे तो प्रमाण की आवष्यकता होती है। इसे ही कानूनी प्रमाण कहते है। कातिल जब कत्ल से इन्कार करता है तो वह अपने मन मंे यह जानता है कि वह झूठा है न्याय प्रमाण चाहता है। कानून की षब्दावली में एक चीज़ होती है परिस्थिति मूलक साक्ष्य(circumstaintial evidence )।

अब देखियें! मानव इतिहास के सबसे अन्धकारमय युग मंे अपने समय की सबसे अधिक भटकी हुई कौ़म में एक बच्चा पैदा होता है। अपनी आयु की 40 मन्ज़िलें तय करने तक किसी एक भी छोटी से छोटी बुराई में षामिल नही होता। उसने 40 वर्ष में कभी कोई झूठ नही बोला, कभी किसी को धोखा नही दिया, कभी किसी का दिल नही दुखाया, कभी किसी का अधिकार हनन नही किया, कभी किसी अमानत में हैराफेरी नही की। उसकी कौ़म उसको ’अल-अमीन’ (धरोहरधारी) और ’ उस्सादिक’(सदा सत्यवादी) की उपाधि देती है।

वह 40 वर्ष की आयु में अचानक यह घोषणा करता है कि ईष्वर ने उसको दूत बनाया है। उसने खुदाई का दावा नही किया,ईष्वर का पुत्र होने का दावा नी किया बल्कि अपने आपको, ईष्वर का बन्दा व दास कहा और यह कहा कि ईष्वर ने मनुष्य के मार्ग- दर्षन के लिये उसके पास सन्देष भेजा है। इस घोषणा के बाद वह जो कौ़म की आँखो का तारा था, उनके क्रोध का पात्र हो गया। उसके आहवान से उनकी सभी आस्थाओं व कुकर्मो के महल टूट रह थे। उसके सामने प्रस्ताव रखा गया कि वह चाहे तो उसको कौ़म का सरदार बना दिया जाये। वह ज़बान से निकाले तो अरब की सुन्दर से सुन्दर युवतियाँ उसके चरणों में डाल दी जायंे। वह कहे तो उसके टूटे फूटे घर पर धन का ढेर लगा दिय जाये, लेकिन वह अपने धर्म प्रचार से बाज़ आजाये। उसके बूढे संरक्षक चाचा से उस पर जो़र डलवाया गया तो वह व्यक्ति उत्तर देता है कि ’’खुदा की क़सम चाचा जी, अगर यह लोग मेरे एक हाथ पर सुर्य और एक हाथ पर चन्द्रमा भी लाकर रख दें तब भी अपने सन्देश  से विचलित नही हो सकता’’।

उसके और उसके साथियों पर अत्याचार व दमन का दौर शूरू होता है। ढाई वर्ष तक उसकी और उसके परिवार वालों की ऐसी आर्थिक नाकाबन्दी होती है कि वृक्षों की छालें खा-खाकर गुजारा होता है मगर वह कहता है कि वह तो ईशदूत  है और ईश्वर  के सन्देष से हटना उसके लिए संभव नही है। उसके साथियों को अरब की जलती रेत पर नंगे रीर लिटाकर गले में रस्सी डाल कर खींचा जाता है। उसके मानने वालों को चटाई में लपेट कर धुऐं की धूनी दी जाती है। उसके आहवान का समर्थन करने वालो को नंगी पीठ अंगारों पर लिटाकर सीने पर भारी पत्थर रख दिया जाता है यहाँ तक कि रीर की चर्बी से अंगारे बुझते है। उसकी आवाज़ का का साथ देने वाली बूढी स्त्री को क्रूरता से भाला मारकर हीद किया जाता है। वह अपने मुट्ठी भर मतवालो की दर्दनाक कराहें सुनता है, लेकिन वह यही कहता है कि ईश्वर  का ही दूत है। वह जिस मार्ग से गुज़रता है उस पर काॅटे बिछाये जाते है। उसको इतने पत्थर मारे जाते है कि उसका षरीर खून में नहा जाता है और जूतो में खून भर जाने से पैर जूतों से चिपक जाते है। पाॅँव जवाब दे जाते है। थक कर बैठता है तो जबरदस्ती खडा कर दिया जाता है, पत्थरो की वर्षा फिर षुरू हो जाती है। परन्तु वह कांटे बिछाने वालो और पत्थर मारने वालो को दुआ देता है। उसके सिर पर रोजाना अपनी छत से कूड़ा फैंकने वाली स्त्री जब बीमार हो जाती है तो वह उसकी खै़रियत पूछने जाता है। जिन अत्याचारो को 13 घंटे सहन करना असम्भव है, उन्हें वह और उसके साथी निरन्तर 13 वर्षो तक सहन करते है।
और अन्त में वह सभी अपना घर और वतन छोड़ने पर मजबूर कर दिये जाते है। 13 वर्षो तक यह घोर अत्याचार सहन करने वाला यही कहता रहता है कि लोगो! में तुम्हारी ओर ईष्वर का दूत हूँ। अपने देष से 500 किमी0 दूर उसे षरण मिलती है, मदीने की बस्ती के लोग उस पर ईमान लाते है। यहाँ धीरे धीरे अनुयायियों की संख्या बढ़ती है। मक्के से उसके जो साथी षरणार्थी बनकर आये थे वह भी अब खुषहाल हो गये हैं। जो मदीने का बेताज़ बादषाह बन गया है उसकी पत्नियाँ एक दिन यह मांग करती है कि हे ईष्दूत अब तो हर घर में खुषहाली आ गयी है अब कुछ हमारे गुजारे में भी वृद्धि होनी चाहिए। वह व्यक्ति उत्तर देता है कि उन्हे स्वतन्त्रता है कि दो में से किसी एक का चयन कर लें, उससे अलग रहकर खुषहाली का जीवन व्यतीत कर लें या उसके साथ रहकर फ़ाक़ो का।
वतन वाले यहां भी पीछा नही छोड़ते। उस पर सेनाएं इकट्ठा करके चढ़ाईयां करते है। षान्ति के दूत को षस्त्र उठाने के लिये मजबूर करते हैं। आखिर आठ साल मदीने में जीवन बिताने के बाद मक्के की विजय का दिन आता है। जिन षत्रुओं ने उसका जीना दूभर का दिया था उनके लिए वह सार्वजनिक क्षमा की घोषणा करता है। यहां तक की जिन घरो से उसको और उसके साथियो को निकाला गया था, विजेता के रूप में मक्के मंे प्रवेष के पष्चात उन्हें भी वापस नही लेता। वह सांसरिक ऐष्वर्यमय जीवन का इच्छुक नही है। उसकी तो केवल एक इच्छा है। लोग अपने असली ईष्वर को पहचान लें और अपने स्वामी के संदेष को स्वीकार कर लें।
23 वर्षो में अरब के कोने-कोने में षान्ति स्थापित हो गयी। समय के क्रूरतम आतंकी षान्ति के दूत बन गये। ऊँटो के चराने वाले क़ौमों के इमाम (मार्गदर्षक) बन गये। विष्व इतिहास की इस आष्चर्यजनक क्रान्ति का वह हीरो जिसकी दृष्टि के एक संकेत पर जान न्योछावर करना उसके परवाने अपने जीवन का उद्देष्य समझते है, उसके स्वर्गवास के पष्चात उसकी पत्नी की गवाही सुनिये, ’’उस व्यक्ति ने अपने जीवन काल में कभी पेट भर रोटी नही खायी थी ’’। वह व्यक्ति जीवन भर यह कहता रहा कि लोगो में झूठ नही बोलता, में ईष्वर का दूत हूँ।
वह, जिसको लिखना पढ़ना नही आता था, उसने संसार को आष्चर्यजनक तत्वज्ञान दिया। उसने दुनिया को अभूतपूर्व आर्थिक प्रणाली प्रदान की। उसने नागरिक षास्त्र के वह सिद्धान्त पेष किये जो अद्वितीय हैं। उसने समाज षास्त्र के सफलतम आधार स्थापित किये। उसने अत्यन्त भटकी हुई कौम को नैतिकता के सर्वोच्च षिखर तक पहँुचा दिया। उसने दासता के बाजार में समानता का ऐसा अविष्वसनीय ष्वास फूँक दिया कि इतिहास ने ऐसा दृष्य भी देखा जब एक गुलाम ऊट पर सवार है और समय का हाकिम उसकी नकेल पकडे पैदल चल रहा है। उसने राजनीति के अद्भुत नमूने प्रस्तुत किये। उसने महान सेनापति कि रूप में अपना लोहा मनवाया। उसने समाजिक क्रान्ति का पवित्र दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उसने न्याय की अद्वितीय प्रणाली स्थापित की। गै़र मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिपिबद्ध इतिहास पृष्ठ साक्षी है कि यह तमाम गुण उस व्यक्ति में 23 वर्ष की असम्भव अवधि में प्रकट हुये और इतिहास इस बात का भी साक्षी है की उसने कभी अपने जीवन में उन पर गर्व नही किया बल्कि वह व्यक्ति सदैव यही कहता रहा कि लोंगो में जो कुछ कर रहा हुँ ईष्वर के मार्गदर्षन में कर रहा हूँ, तुम सबकी ओर में ईश्वर का दूत हूँ।

इन तमाम विषेषताओं से परिपूर्ण उस व्यक्ति ने अपने अनुयायियों के सिर को कभी अपने सम्मान हेतु अपने आगे नही झुकने दिया बल्कि उसने तो यह भी पसन्द नही किया उसकी सभा में लोग उसके आदर सत्कार के लिए खडे हों। अपना चित्र बनाने से इसलिए मना कर दिया कि उसके स्वर्गवास के उपरान्त लोग श्रद्धा में सीमाओ का उल्लंघन कर उसके चित्र की पूजा न करने लगें। उसने सदैव यही कहा कि पूजा के योग्य सिर्फ एक ईष्वर एक खुदा है। मैं तो केवल ईश्वर का दूत एवं दास हूँ।
क्या इन 23 वर्षो की परिस्थितियों व घटनाओं का एक-एक क्षण पुकार-पुकार के गवाही नही दे रहा है कि यह किसी झूठे व्यक्ति का जीवन नही है? वह अपने दावे से सच्चा था। वह ईश्वर का दूत था।(उन पर षान्ति हो)

उसकी महानता को तो आप भी स्वीकार करते है परन्तु आप यह मानने को तैयार नही है कि वह ईश्वर का दूत हो सकता था। आप माने या न मानें, इसका आपको अधिकार है परन्तु यह सुनले कि यह परिस्थिति मूलक गवाही(circumstaintial evidence) घटिया गवाही नही है। मेरे पास आकर कोई व्यक्ति यह कहे कि वह व्यापरी है, कुछ समय वह मेरे पास रहें और में देखूँ कि वह व्यापार के तमाम रहस्यों से परिचित है। उसकी बताई हुई योजनाओं को कार्यान्वित करने से मेरे व्यापार में उन्नती भी हो और वह व्यक्ति मुझसे किसी भी प्राकार के लाभ व बदले का इच्छुक न हो तो मेरे पास यह सन्देह करने का कोई उचित कारण न होगा कि वह व्यापरी नही है।

लेकिन अभी रूके। गवाही केवल परिस्थिति मूलक ही नही दस्तावेजी़ सबूत(documentry  evidence) भी विद्यमान है। एक नही अनेक है। उसके आने से पूर्व ही से, षताब्दियों पहले से संसार के अनेकों धर्मो के ग्रन्थ उसके आने की गवाही देते चले आ रहे है। यह प्रमाण आज भी मौजूद है। यह बाद में क्रमबद्ध किये हुय(
afterthought ) नही है। यह महान गवाहियाँ किसी तरह से घटिया गवाहियाँ नही मानी जासकतीं। आप अधिक से अधिक यह कह सकते है कि गवाही में प्रस्तुत किये जाने वाले ग्रन्थों को भी आप ईष्वर प्रेषित ग्रन्थ नही मानते, परन्तु इससे गवाही कमजो़र नही होती। वह ईश्वर की ओर से हों या मनुष्यों के बनाये हुये, यह दस्तावेज़ उसके संसार में आने से षताब्दियों पहले से मौजूद है और यह वास्तविकता उनको अत्यन्त प्रमाणित गवाहों की पंक्ति में खडा करती है।

परन्तु आपके पास षक करने का एक कारण बाकी है। उस व्यक्ति का प्रस्तुत किया हुआ कलाम(वाणी) जिसे वह ईश्वर का कलाम कहता था और आप उसे ईश्वर का कलाम मानने को तैयार नही है। इस कलाम पर आपकी जो षंकाएं है उन्हे में आपकी अगली आपत्तियों के उत्तर में दूर करने का प्रयास करूँगा।


















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