Wednesday 25 January 2017

पश्चिमी उजाला जनवरी 2017

पश्चिमी उजाला अंक जनवरी
प्रस्तुत लेख इस्लामिक स्कालर "सैयद अब्दुल्ला तारिक "की किताब "गवाही" से लिया गया है यह किताब तारिक साहब ने श्रीमान दिवाकर राही साहब के लेख ’’ वेद से कुरआन तक का सफर’’ में धर्म और पैगम्बरवाद के प्रति की गई आपत्तियां के जवाब में लिखी गई थी यें आपत्तियाँ आप तौर पर काफी लोगो के मन मे होती इसी कारण हमने तारिक साहब द्वारा लिखित ’’गवाही’’ नामक किताब को किस्तवा पष्चिमी उजाला में प्रकाषित कर रहें है अगर आप पूरी किताब एक साथ पढ़ना चाहते है तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है।
आपत्ति ईश्वर या खुदा सारे ब्रह्राण्ड का स्वामी है, सृष्टिकर्ता है, सर्वषक्तिमान और सर्वव्यपक है तथा सर्वज्ञ है तो फिर यह समझ में नही आता कि आखिर वह इतना मजबूर क्यूं है कि वह अपना पैगा़म देने के लिए अपने ही द्वारा बनाये हुए इन्सान का सहारा ले अथवा उसके माध्यम से ही अपनी किताब अपने बन्दो तक पहुँचा सके, स्वयं कोई ऐसा तरीका़ इख्तियार न कर सके जिससे वह सीधे बन्दो के हृदय तक अपना सन्देष पहुँचा सके? वह क्यों किसी विषेष व्यक्ति को यह उत्तरदायित्व सौपें कि वह दूसरों को यह बताए कि खुदा ने उसके ज़रिये क्या कहलाया है।.................................में नही मानता कि अगर खुदा है और ऐसा ही है जैसा इस्लाम कहता है तथा अन्य धर्म भी कहते है तो वह इतना असहाय नही हो सकता।
उत्तरः आपकी आपत्ति उतनी ही पुरानी है जितनी पैग़म्बरवाद(ईषदूतत्व) का इन्कार करने वालों की पृथ्वी पर मौजूदगी़। कुरआन ने हमे बताया कि पिछले ईषदूत को न मानने वाले भी उनके काल में यह आपत्ति(ऐतराज़) किया करने थे कि यह कैसा पैगम्बर है, यह तो (खाता, पीता और चलता, फिरता ) हमारी ही तरह का एक इन्सान है। आपने अपने लेख में किसी जगह यह नही कहा आप ईषवर को उसके उन सारे गुणों के साथ ख्ुदा नही मानते जिनका आपने वर्णन किया है और जो विष्व के करीब-करीब सभी धर्मो की मान्यता का भाग है, अगर ऐसा हाता तो आप सीधे ईष्वर और ईष्वरीय गुणों के इन्कार पर लेख लिख देते, कुरआन, रिसालत और हज़रत मुहम्मद स0 कि विषय में कुछ कहने की जरूरत ही नही पढती। अतः में यह मानकर उत्तर दे रहा हूँ कि आप खुदा की खुदाई को उसी तरह स्वीकार करते है जिस तरह संसार के अधिकतर धर्म मानते है और उसे सृष्टिकर्ता और सर्वषक्तिमान के साथ-साथ सर्वनियामक भी मानते है ं
आपके ऐतराज़ का यह ढंग विचित्र है कि ईष्वर ने अगर किसी इन्सान को दूत बनाया तो आप ईष्वर को असहाय कह रहे है, मानो वह कोई और ढंग इख्तियार कर ही नही सकता था। इस तर्क षैली पर तो आप यह सवाल भी उठा सकते है कि ईष्वर ने बच्चे के पालन पोषण के लिए अपने द्वारा बनाई हुई स्त्री का सहारा क्यों लिया? क्या ईष्वर बच्चे को जन्म से ही चलना, फिरना,खाना,पीना, सिखा देने से मजबूर था? और इस प्रकार के अनेको प्रष्न कर सकते है कि ईष्वर ने मनुष्य का पेट भरने के लिए मनुष्य ही के उन हाथों का सहारा क्यों लिया जो स्वंय ईष्वर ने उसे प्रदान किये है? क्या ईष्वर इतना असहाय था कि बिना हाथ हिलाये पेट नही भर सकता था? सकने या न सकने का यहाँ क्या प्रष्न है। स्पष्ट षब्दों में यूँ कहिए कि ईष्वर ने आपकी बुद्धि के अनुसार ब्रह्राण्ड का प्रबन्ध किया होता तो आप ऐतराज़ नही करते।
संसार मेंं मनुष्य को पैदा करने तथा अच्छे बुरे कार्य करने की आजादी देने के बाद यह तो आप भी मानते है कि ईष्वर को अपने बन्दो के मार्ग-दर्षन का प्रबन्ध करना चाहियें था, यद्यपि आपने इसके लिए यह प्रस्ताव रखा है कि वह उनके मन में सीधे अपना सन्देष उतार देता। बेषक ईष्वर इस कि क्षमता रखता था और रखता है परन्तु इसमें सबसे बडी त्रुटि यह है कि फिर हर मनुष्य आकर अपना अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता कि ईष्वर ने उसके मन में यह विचार डाला है। कर्मक्षेत्र में स्वतन्त्रता मिलने के बाद सीधे ईष्वर की ओर से मन में सही मार्ग का अवतरण होना इस की गारन्टी नही बन सकता कि मनुष्य ईष्वर की आज्ञा का उल्लंघन नही करेगें। यह बात स्पष्ट रहे कि ईष्वर ने अपने बन्दों के मार्गदर्षन का प्रबन्ध हर क्षेत्र में किया है। उन्हें एक सम्पूर्ण जीपन संविधान दिया है। अब अगर वह कोई एक कसोटी या प्रमाणिक पुरूष को नामाकिंत करने के बजाये प्रत्यक्ष रूप से हर व्यक्ति के मन में यह बात डालता तो हर नास्तिक यह दावा कर सकता था कि ईष्वर का दिया हुआ विधान वह प्रस्तुत कर रहा है एक व्यक्ति यह दावा कर सकता था कि ईष्वर ने चोर का हाथ काटने का आदेष दिया है दुसरा कह सकता था नही, जेल में डाल देने का आदेष दिया है। चोर के सम्बन्धी यह कहते के कि डांट डपट कर छोड देने का आदेष है , और स्वयं चोर यह दावा कर सकता था कि स्वंय ईष्वर ने उसके मन में चोरी करने का विचार डाला था और वह चोर ईष्वर की नीति के अनुसार कर रहा है, अतः बजाये दण्ड के पुरूस्कार का हकदार ठहरा। आपके द्वारा प्रस्तुत कार्यप्रणाली पर 






















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