Saturday 28 October 2017

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आपत्ति- ईश्वर या खुदा के सर्व-शक्ति सम्पन्न या कादिरे कुल होने की जो धारणा या आस्था है उससे पैगम्ब्र, अवतार या सन्देशवाहक को अन्तिम मानने की आस्था की कोई संगति नही है। खुदा को एक तरफ तो हम कादिरे कुल कहें और साथ ही कहें कि अब अनन्त काल तक ब्रहमाण्ड में स्थित असंख्य दुनियाओं में किसी भी दुनिया में चाहे कुछ हो जाये, कितना ही अनर्थ हो जाये, कितने ही पाप व अत्याचार हो, वह पैगम्बर न भेजने के लिये वचनबद्ध है। यह पूर्वापर विरोध नही तो और क्या है? प्रकारान्तर से इस मान्यता का अर्थ यह है कि अब खुदा में अपना पैगम्बर भेजने की ताक़त नही रही.... हर प्राणी का अधिकार है कि अपना सन्देश भेजने के लिये किसी पत्रवाहक के सुपुर्द यह काम कर दे पर खुदा को अब यह हक़ भी नही रह गया है।

उत्तर- अपनी आपत्ति की अन्तिम पंक्ति में जो कुछ आपने कहा है उसका अर्थ यह निकलता है कि खुदा को यह अधिकार होना चाहिए कि वह अपना सन्देश किसी सन्देशवाहक द्वारा भेज सके। सैद्धान्तिक रूप में आप पैगम्बरवाद को स्वीकार कर रहे हैं, जिस पर पिछले पृष्ठों में आपत्ति करते आये। इस्लाम की मान्यताओं में परस्पर विरोध का दोष लगाने के प्रयास में किसी न किसी भी प्रकार हर स्थान पर आपत्ति ढूंढते रहने से आप स्वंय विरोध का शिकार हो गये। या शायद यह वकीलों वाला अन्दाज है कि ‘मीलार्ड मेरा मुवक्किल घटना के समय घटनास्थल से सैंकड़ो मील दूर था परन्तु यदि वह घटनास्थल पर उपस्थित भी था तो वह अपराधी नही है।’ आप वकील है और आपने इसी अन्दाज को अपनाते हुए यह कहना चाहा कि पैगम्बरवाद का तत्व सिरे से ही निराधार है। परन्तु अगर ठीक भी है तो अनितम दूत को कोई हो ही नही सकता।
आपकी इस आपत्ति में भी आपकी सबसे पहली आपत्ति की तरह ‘नही भेज सकने’ के शब्द हैं। ईश्वर अब कोई नया दूत नही भेजेगा का अर्थ यह बिल्कुल नही है कि वह भेज सकने में समर्थ नही हैं। यह आपने नासमझों वाला तर्क प्रस्तुत किया हैं रहा यह प्रश्न कि एक विशेष समय तक ईश्दूतों के आने के पश्चात फिर दूतों के आने का क्रम रोक दिया गया और अब कोई नया दूत क्यों नही आयेगा तो इसका उत्तर निम्नलिखित है-
हज़रत मुहम्मद स0 ऐसे एकमात्र दूत हैं जो आधुनिक ऐतिहासिक काल में संसार में पधारे। उनसे पूर्व आने वाले सभी दूत व मार्गदर्शक ऐसे काल में दूत बनाये गये थे जो ऐतिहासिक युग नही था और इसलिये उनके जीवन के सम्पूर्ण हालात भी अंधकारमय हैं और उनकी पहुंचाई हुई ईशवाणी भी पूर्ण रूप से सुरक्षित नही रह सकी। इन्जील के विषय में सारे ईसाई शोधकर्ता सहमत हैं कि मौजूदा इन्जीलें अक्षरशः उन शब्दों में मौजूद नहीं जो हज़रत ईसा के मुख से निकले थे। यही दशा तौरेत की भी है। गौतम बुद्ध और श्री महावीर के अपने शब्दों में रचित कोई साहित्य संसार में विद्यमान नही है। बुद्ध के जो उपदेश संसार के विभिन्न भागों में मिलते हैं उनमे परस्पर बहुत विरोध है। वेदों के विषय मे बहुस से हिन्दु विद्धान स्कीकार करते हैं कि वर्तमान में उपलब्ध चार वेद अक्षरशः वह वेद नहीं है जो पहले कभी एक वे था ओैर स्मरण शक्तियों में सुरक्षित था। यह दावा केवल कुरआन के विषय में पूरे विश्वास के साथ किया जा सकता है और आसानी के साथ प्रामाणित किया जा सकता है कि वह अक्षरशः वही कुरआन है जो हज़रत मुहम्मद स0 ने सुनाया था और हज़रत मुहम्मद स0 संसार के वह अकेले दूत जिनके जीवन की एक-एक घटना जन्म से लेकर स्वर्गवास तक रिकार्ड है। उस काल में जिन लोगों को उन्हें दूत नही माना था, उन्होंने उनको बचपन से अपने सम्मुख बड़ा होते देखा और उनके आर्दश जीवन का स्वयं अवलोकन किया, तब भी उनके दूतत्व पर आस्था व्यक्त नही की। इस प्रकार अगर हज़रत मुहम्मद स0 या कोई और दूत स्वयं भी आज आस्था न रखने वालों से यह कहता कि मै्र ईशदूत हंू तो वह अस्वीकार ही करते। दूत के आने का उददेश्य यही नही होता कि वह आकर सबको आस्था रखने पर मजबूर कर देगा, बल्कि कलाम (ईशवाणी) के साथ दूत की उपस्थिति का सबसे बड़ा उददेश्य यही होता है कि वह कलाम के अनुसार स्वयं प्रत्यक्ष रूप में स्वयं आर्दश बनकर दिखा दे। अब जबकि कलाम भी सुरक्षित है और दूत के प्रत्यक्ष जीवन का एक-एक क्षण भी रिकार्ड में है, दूत के आने की आवश्यकता अब नही रही।