Sunday 26 November 2017

November 2017




आपत्ति- असंख्य सौर जगत हैं और इस सौर जगत की हकीकत महासागर में एक बंूद की हकीकत से ज्यादा नही, फिर इस सौर जगत में भी इस पृथ्वी की कोई हैसियत नही है और इस पृथ्वी में अरब जैसे छोटे से देश की हैसियत नही है। प्रश्न यह है कि....उन्होंने (अल्लाह ने) अरब में ऐसे कौन से गुण देखे की समस्त ब्रहमाण्ड को ताक पर रख कर अरब को एक ऐसा पैगम्बर और एक ऐसी किताब दे दी कि अब अनन्तकाल के लिये समस्त ब्रहमाण्ड इस नेयमत से वंचित हो गया।

उत्तर- अरब और गैर अरब का विवाद आप कहां ले बैठे। इस्लाम का सन्देश सारी पृथ्वी और सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड के बौद्धिक प्राणियो के लिये है। जब मुनष्य ने इतनी उन्नति नही की थी कि एक क्षेत्र की सूचनाएं और रिकार्ड दूसरे क्षेत्र तक पहुंचा सके तो हर क्षेत्र के लिये अलग-अलग दूत भेजे जाते थे। यह दूरियां सिमट गईं तो यह आश्यकता समाप्त हो गई। एक अन्तिम दूत उस समय में आना था जब यह दूरियां समाप्त हो जाएं। हालांकि संसार के अनेक धर्मो के ग्रन्थ ‘काबे’ को संसार का पहला पूजास्थल और धरती की नाभि मानते हैं और इस दृष्टिकोण से उस दूत के जन्म इस वाद-विवाद में पड़ने की आवयकता ही नही है कि मक्का ही क्यों। यह समझें कि वह संसार के किसी भी भाग में अवतरित हो सकता था, अरब में हो गया तो इसमें आपत्ति की क्या बात है। क्या अगर वह भारतवर्ष में होते तो आप उन पर ईमान लाते ? प्रश्न उनके अरब या अमेरिका या जापान में जन्म लेने का नही होना चाहिए। वह अरब के अतिरिक्त कहीं और पैदा हुए होते तब भी उनकी शिक्षाएं आसानी के साथ हर किसी तक पहुंच जातीं जिस तरह संचार व्यवस्था की उन्नति के इस काल में हम तक पहंुच चुकी है। परखने की वास्तविक चीज यह है कि उनका पैगम्बरी का इतने आगे निकल चुके है कि अपने संकेत (ैपहदंसे) भी भेज रहे हैं, उन्हें हम अभी समझ (क्मबवकम) नही पा रहे हैं। इतना ही नही, बल्कि उन प्राणियों कें धरती पर आकर वापस जाते रहने की सम्भावनाओं को नकारा नही जा सकता है। निष्कर्ष यह कि ऐसी कोई जाति जहां कहीं पाई जाती है वह हमारी उपेक्षा अधिक विकसित हो सकती है। सम्भव है कि उसके पास ऐसे साधन हों कि हमारे रिकार्ड वह अपने यहां स्थानान्तरित कर सकते हों। जब तक उनसे परस्पर वार्तालाप का सयम न आ जाये यह प्रश्न उठाना अभी अर्थहीन है कि अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद स0 उस जाति के लिये अन्तिम कैसे हुए, परन्तु यह भी स्पष्ट रहे कि इस प्रश्न को उस समय तक उठा रखने से इस्लाम का दावा गलत सिद्ध नही होता। जिस प्रकार सूर्य की परिक्रमा जैसे बहुत से कुरआनी वक्तव्यों की महानता अब बीसवीं शताब्दी में आकर ही खुल सकी है उसी प्रकार कुरआनी चमत्कार का यह पहलू किसी और समय में सामने आयेगा।







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